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उ॒त त्यन्नो॒ मारु॑तं॒ शर्ध॒ आ ग॑मद्दिविक्ष॒यं य॑ज॒तं ब॒र्हिरा॒सदे॑। बृह॒स्पतिः॒ शर्म॑ पू॒षोत नो॑ यमद्वरू॒थ्यं१॒॑ वरु॑णो मि॒त्रो अ॑र्य॒मा ॥५॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

uta tyan no mārutaṁ śardha ā gamad divikṣayaṁ yajatam barhir āsade | bṛhaspatiḥ śarma pūṣota no yamad varūthyaṁ varuṇo mitro aryamā ||

पद पाठ

उ॒त। त्यत्। नः॒। मारु॑तम्। शर्धः॑। आ। ग॒म॒त्। दि॒वि॒ऽक्ष॒यम्। य॒ज॒तम्। ब॒र्हिः। आ॒ऽसदे॑। बृह॒स्पतिः॑। शर्म॑। पू॒षा। उ॒त। नः॒। य॒म॒त्। व॒रू॒थ्य॑म्। वरु॑णः। मित्रः॒। अ॒र्य॒मा ॥५॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:46» मन्त्र:5 | अष्टक:4» अध्याय:2» वर्ग:28» मन्त्र:5 | मण्डल:5» अनुवाक:4» मन्त्र:5


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (दिविक्षयम्) जिसका प्रकाश में निवास (यजतम्) जो मिलता हुआ (त्यत्) वह (मारुतम्) मनुष्यसम्बन्धी (बर्हिः) उत्तम आसन और (शर्धः) बल (नः) हम लोगों को (आ, गमत्) प्राप्त होवे और (उत) भी (बृहस्पतिः) बड़ों का पालन करने और (पूषा) पुष्टि करनेवाला (वरुणः) उदानवायु के सदृश उत्तम (मित्रः) प्राणवायु के सदृश प्रिय (उत) भी (अर्यमा) न्यायकारी और (आसदे) प्रवेश होने को (वरूथ्यम्) गृहों में श्रेष्ठ (शर्म) गृह को प्रवेश होने को (नः) हम लोगों को (यमत्) देता है ॥५॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य वायु के गुणों को विशेषकर जानें, वे सब प्रकार से धन को प्राप्त होवें ॥५॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे मनुष्यो ! दिविक्षयं यजतं त्यन्मारुतं बर्हिः शर्धो न आ गमदुतापि बृहस्पतिः पूषा वरुणो मित्र उताऽऽर्यमाऽऽसदे वरूथ्यं शर्माऽऽसदे नो यमत् ॥५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (उत) अपि (त्यत्) तत् (नः) अस्मान् (मारुतम्) मरुतां मनुष्याणामिदम् (शर्धः) बलम् (आ) (गमत्) गच्छेत् (दिविक्षयम्) दिवि प्रकाशे क्षयो निवासो यस्य तम् (यजतम्) सङ्गतम् (बर्हिः) उत्तममासनम् (आसदे) आसत्तुमुपवेष्टुम् (बृहस्पतिः) बृहतां पालकः (शर्म) गृहम् (पूषा) पुष्टिकर्त्ता (उत) अपि (नः) अस्मानस्माकम् वा (यमत्) यच्छति (वरूथ्यम्) गृहेषु साधु (वरुणः) श्रेष्ठ उदान इव उत्तमः (मित्रः) प्राण इव प्रियः (अर्यमा) न्यायकारी ॥५॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्या वायुगुणान् विजानीयुस्ते सर्वतो धनं लभेरन् ॥५॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे वायूच्या गुणांना विशेषकरून जाणतात त्यांना सर्व प्रकारे धन मिळते. ॥ ५ ॥